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ओशो वाणी: प्रत्येक व्यक्ति के सात शरीरों में छिपे हैं संपूर्ण जीवन के सूत्र

भौतिक शरीर एक से सात वर्ष की उम्र के बीच बनता है

ओशो वाणी: प्रत्येक व्यक्ति के सात शरीरों में छिपे हैं संपूर्ण जीवन के सूत्र। भौतिक शरीर एक से सात वर्ष की उम्र के बीच बनता है।

ईश्वर की सबसे सर्वश्रेष्ठ कृति इंसान को माना गया है, उसका संपूर्ण जीवन असीम संभावनाओं व समस्याओं से जुड़ा है। मानवीय विकास के अनेक आयाम हैं, ​व्यक्ति जिस प्रवृत्ति को धारण कर लेता है, वैसा वह बन जाता है। प्रसिद्ध दार्शनिक व विचारक रजनीश ओशो ने इंसान के 7 शरीरों का वर्णन किया है। जिस व्यक्ति के जिस शरीर का विकास होता है, वह उस प्रकृति या स्वभाव का बन जाता है।

ओशो वाणी :  इंसान के 7 प्रकार के शरीर होते हैं:-

  • एक वह शरीर जो भौतिक रूप में नजर आता है।
  • दूसरा वह जो उसके पीछे है, जिसे ईथरिक बॉडी या आकाश शरीर कहा जाता है।
  • तीसरा शरीर एस्ट्रल बॉडी या सूक्ष्म शरीर कहा जाता है।
  • चौथा शरीर मेंटल बॉडी या मनस शरीर कहा जाता है।
  • पांचवां शरीर स्प्रिचुअल बॉडी या आत्मिक शरीर है।
  • छठा शरीर को कॉस्मिक बॉडी या ब्रह्म शरीर होता है और
  • सातवां शरीर निर्वाण शरीर होता है, जिसमें काया नहीं रहती, फिर भी व्यक्ति रहता है

भौतिक शरीर : एक से सात वर्ष

  • बकौल ओशो भौतिक शरीर एक से सात वर्ष की उम्र के बीच बनता है। इस दौरान बाकी छह शरीर बीजरूप में प्रच्छन्न होते हैं। उनके विकास की संभावना होती है, लेकिन वे इस उम्र में विकसित नहीं होते। इसीलिए किसी भी बच्चे के पहले सात साल अनुकरण के होते हैं। इनमें कोई बुद्धि, कोई भावना, कोई कामना नहीं होती।
  • सिर्फ भौतिक शरीर का विकास होता है। कुछ लोगों का जीवन पर्यंत भौतिक शरीर ही होता है, वे जीवन भर इससे बाहर या आगे नहीं बढ़ पाते हैं। ऐसे व्यक्तियों में और पशु में कोई अंतर नहीं रहता। पशु के पास भी सिर्फ भौतिक शरीर ही होता है, उसके दूसरे शरीर अविकसित होते हैं।

भाव या आकाश शरीर : सात से 14 साल

  • ओशो का कहना है कि सात से 14 साल की उम्र में भाव शरीर या आकाश शरीर का विकास होता है। इस दौरान बच्चे भाव जगत का विकास होता है। चौदह वर्ष की उम्र में इसीलिए सेक्स संवेदनाएं प्रकट होती हैं और बढ़ती हैं।
  • यह उम्र भाव की बहुत प्रगाढ़ रूप होती है। माना जाता है कि कुछ लोग सिर्फ 14 वर्ष के ही होकर रह जाते हैं। जीवनभर वे इसी उम्र की प्रवृत्तियों में लीन हो जाते हैं। उनके शरीर की उम्र बढ़ती है, लेकिन वे अगले शरीर की ओर उन्मुख नहीं होते।

सूक्ष्म शरीर : 14 से 21 साल 

  • 14 से 21 साल की उम्र में सूक्ष्म शरीर का विकास होता है। दूसरे शरीर में भाव का विकास होता है तो तीसरे शरीर में तर्क, विचार और बुद्धि का विकास होता है, इसे सूक्ष्म शरीर कहते हैं। दूसरे शरीर के विकास के बाद चौदह वर्ष में एक तरह की प्रौढ़ता मिलती है, लेकिन वह प्रौढ़ता यौन-प्रौढ़ता है। प्रकृति का काम उतने से पूरा हो जाता है। इसलिए पहले शरीर और दूसरे शरीर के विकास में प्रकृति पूरा सहयोग देती है, लेकिन दूसरे शरीर के विकास से मनुष्य नहीं बन पाता।
  • तीसरे शरीर या सूक्ष्म शरीर के विकास से ही व्यक्ति की विचार, तर्क और बुद्धि विकसित होती है। वह शिक्षा, संस्कृति और सभ्यता पर निर्भर होती है। इसलिए दुनिया के अधिकांश देशों में 21 साल के व्यक्ति को ही मताधिकार दिया गया है। भारत में अब इसकी उम्र 18 साल कर दी गई है। यह भी सच है कि अधिकांश लोगों का विकास तीसरे शरीर पर ही आकर रुक जाता है। वे जीवन भर इसी अवस्था में रहते हैं। उनका चौथा शरीर यानी मनस शरीर विकसित नहीं हो पाता है।

मनस शरीर : 21 से 28 साल

  • चौथा शरीर मनस शरीर कहलाता है। यह 21 से 28 साल की उम्र में विकसित होता है। इसके अदभुत और अनूठे अनुभव होते हैं। मान लीजिए किसी व्यक्ति की बुद्धि विकसित नहीं हुई और उसे गणित में कोई आनंद नहीं आता है, हालांकि गणित का अपना आनंद है। महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन गणित में मंत्रमुग्ध हो जाते हैं तो कोई संगीतज्ञ बांसुरी या वीणा में खो जाता है।
  • वहीं, कोई चित्रकार रंगों में डूब जाता है। आइंस्टीन के लिए गणित खेल जैसा है, लेकिन पर उसके लिए बुद्धि का उतना विकास होना चाहिए कि वह गणित को खेल बना सके। इंसानियत को बचाने में इस चौथे शरीर की अहम भूमिका है।
  • इस शरीर का उपयोग करने वाले कई वैज्ञानिकों, सिद्ध महापुरुषों, तांत्रिकों की हत्या तक कर दी गई, क्योंकि वे ऐसे रहस्य जान गए थे, जिनके दम पर वे जान जाते थे कि आपके मन में क्या चल रहा है।
  • आपके घर में कहां क्या रखा है, यह उन्हें घर के बाहर से पता हो सकता है। सारी दुनिया में इस चौथे शरीर को एक तरह का काला जादू समझा गया, इसलिए अधिकांश लोग तीसरे शरीर से आगे नहीं बढ़ पाए, यानी उनका मानसिक विकास उतना नहीं हुआ कि वे चौथे शरीर में प्रविष्ट हो सके। जबकि चौथे शरीर में खतरों के साथ अदभुत लाभ भी थे।
  • चौथे शरीर की बड़ी संभावनाएं हैं। योग में जिन सिद्ध महापुरुषों का वर्णन है, वह इस चौथे शरीर की ही बुनियाद पर टिका है। इस शरीर का विकास भी कम ही लोग कर पाते हैं।

अध्यात्म शरीर : 28 से 35 वर्ष

  • पांचवें शरीर का विकास 28 से 35 वर्ष की उम्र में होता है। इसे अध्यात्म शरीर या स्प्रिचुअल बॉडी कहा जाता है। यदि कोई व्यक्ति सही ढंग से जीवन जिए तो उसका विकास इस दौरान हो जाना चाहिए। लेकिन अधिकांश लोगों का पांचवां शरीर बन ही नहीं पाता है। इसलिए हम आत्मा, ईश्वर, अध्यात्म जगत की बातों को समझ ही नहीं पाते हैं।
  • शरीर में यदि कुंडलिनी जागे तो ही पांचवें शरीर तक इंसान पहुंच पाता है। जो यहां तक नहीं पहुंचते वे आत्मा को इसलिए समझ नहीं पाते कि वह दिखाई नहीं देती है। उनके लिए यह सिर्फ शब्द है। जब हम कहते हैं कि दीवार, तो सिर्फ शब्द नहीं होता, वहां सच में ​दीवार दिखाई देती है, लेकिन आत्मा कहते ही हमें कुछ दिखाई नहीं देता।
  • साधकों को ही आत्मा के दर्शन हो सकते हैं या वे उसका विचार कर सकते हैं। आत्म तत्व तक पहुंचने वाले इंसान भी वहीं रुक जाते हैं और वे कहते हैं, यात्रा पूरी हो गई। आत्मा पा ली यानी सब पा लिया, लेकिन इंसानी जीवन की यात्रा यहीं पूरी नहीं होती है। जो लोग पांचवें शरीर पर अटक जाएंगे वे परमात्मा को नहीं मानेंगे।
  • वे कोई ब्रह्म, कोई परमात्मा नहीं होता है। जैसे कि जो पहले शरीर पर रुकेगा, वह कह देगा कि कोई आत्मा वगैरह नहीं है। शरीर ही सब कुछ है, शरीर मर जाता है, सब मर जाता है। ऐसा ही आत्मवादी है, वह कहता है, आत्मा ही सब कुछ है, इसके आगे कुछ भी नहीं है। बस परम स्थिति आत्मा है।

ब्रह्म शरीर : 35 से 42 साल

इंसान का छठा शरीर ब्रह्म शरीर होता है। वह कॉस्मिक बॉडी भी कहलाती है। इसका विकास 35 से 42 साल की उम्र में हो जाना चाहिए। जब कोई आत्मा को विकसित कर ले और उसको खोने को राजी हो तो वह छठे शरीर में प्रवेश करता है।

निर्वाण शरीर : 42 से 49 वर्ष 

इंसान के शरीर का सातवां शरीर 42 से 49 वर्ष की उम्र में बन जाता है। सातवां शरीर निर्वाण काया है। यह न कोई शरीर है, न आत्मा वह शरीर विहीन अवस्था है। वह परम है। वहां शून्य ही शेष रह जाएगा। वहां ब्रह्म भी शेष नहीं है। वहां कुछ भी शेष नहीं है। वहां सब समाप्त हो जाता है। दरअसल, निर्वाण शब्द का मतलब होता है, दीये का बुझ जाना।

इसलिए बुद्ध कहते हैं, निर्वाण हो जाता है। व्यक्ति की उम्र कितनी भी हो सकती है, लेकिन उसका क्रमवार विकास उक्त सात चरणों में होने पर ही उसका सर्वांगीण विकास माना जाता है

किस पड़ाव पर रुकने का अंजाम क्या होगा

  • अगर पहले, दूसरे और तीसरे शरीर पर कोई व्यक्ति रुक जाए, तो यही जीवन सब कुछ है- जन्म और मृत्यु के बीच, वह झुलता रहेगा। उसके बाद उसका कोई जीवन नहीं है।
  • यदि कोई व्यक्ति चौथे शरीर पर चला जाए, तो इस जीवन के बाद नरक और स्वर्ग का जीवन है और दुख और सुख की अनंत संभावनाएं हैं।
  • यदि कोई पांचवें शरीर पर पहुंच जाए, तो मोक्ष का द्वार खुल सकता है।
  • यदि छठे शरीर पर पहुंच जाए तो मोक्ष के भी पार ब्रह्म की संभावना है। वहां न मुक्त है, न अमुक्त है, वहां जो भी है उसके साथ वह एक हो गया। अहं ब्रह्मास्मि की घोषणा शरीर के इसी पड़ाव में अनुभव होने की संभावना है। सबसे अंतिम शरीर निर्वाण में न अहं है, न ब्रह्म है, जहां मैं और तू दोनों नहीं हैं। यही अद्वैत है।

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