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Dr APJ Abdul Kalam : 1000 रुपए फीस के लिए बहन ने गिरवी रखे थे गहने

पायलट नहीं हो पाए तो वैज्ञानिक बनकर हुए मशहूर, ऋषिकेश में स्‍वामी शिवानंद जी से मुलाकात और बदल गई जिंदगी की दिशा

Dr APJ Abdul Kalam : 1000 रुपए फीस के लिए बहन ने गिरवी रखे थे गहने।पायलट नहीं हो पाए तो वैज्ञानिक बनकर हुए मशहूर, ऋषिकेश में स्‍वामी शिवानंद जी से मुलाकात और बदल गई जिंदगी की दिशा।

Dr APJ Abdul Kalam : पुण्‍यतिथि 27 जुलाई

पायलट बनने का सपना बचपन में आसमान में उड़ती चि‍ड़ियाओं को देखकर ही बुन लिया था। इसके लिए पढ़ना जरूरी था। हालात घर के अच्‍छे नहीं थे। एक हजार रुपए फीस के लिए बहन को अपने गहने गिरवी रखने पड़े। भाई ने भी मान रखा, दुर्भाग्‍य कहें या संयोग पायलट नहीं बन सके, लेकिन नई राह‍ मिली और बन गए वैज्ञानिक और मिसाइल मैन और देश के 11वें राष्‍ट्रपति बनकर पीपुल्‍स प्रेसीडेंट कहलाए। जी हां, हम बात कर रहे हैं मशहूर वैज्ञा‍निक डॉ. एपीजे अब्‍दुल कलाम की, जिनकी 27 जुलाई को पुण्‍यतिथि है।

Dr APJ Abdul Kalam : उड़ती चिड़ियाओं को देखना और….

कामयाब और महान बनने की कहानी के पीछे डॉ. कलाम का संघर्ष, उम्‍मीद, हौसला और सपनों का कभी पीछा न छोड़ना सब कुछ है। उनके सपनों की उड़ान तब शुरू हुई थी, जब वह पांचवीं क्‍लास में पढ़ते थे। उन्‍हें आसमान में उड़ती चिड़ियों को देखना बहुत अच्‍छा लगता था। एक दिन‍ क्‍लास में टीचर से पूछा, ये चिड़िया उड़ती कैसे है। समझाने के लिए उनके सुब्रमण्‍यम सर पूरी क्‍लास के बच्‍चों के साथ समंदर किनारे पहुंचे और पक्षियों को दिखाकर उनके उड़ने की पूरी तकनीक समझाई। यहीं से बालक कलाम ने पायलट बनने का सपना बुनना शुरू किया, लेकिन यह सच कैसे होता क्‍योंकि घर की माली हालत ठीक नहीं थी।

साइकिल से घर-घर बांटते थे अखबार

पांच भाई-बहनों के साथ इतने बड़े परिवार के लिए दो वक्‍त की रोटी जुटाने में भी बड़ी मुश्किल होती थी। पिता जैनुल आबदीन पेशे से नाविक थे और रामेश्‍वर आने जाने वाले तीर्थयात्रियों को नाव किराए पर देते थे। यही परिवार चलाने का एकमात्र सहारा था और तूफान में वह नाव भी टूट गई। रामेश्वरम आने जाने वाले तीर्थ यात्रियों को नाव किराए पर देते थे लेकिन चक्रवात में वह नाव भी टूट गई। जल्‍द ही कलाम को जिम्‍मेदारियों का अहसास हो गया और वह अपनी पढ़ाई जारी रख सके, इसलिए रेलवे स्‍टेशन से अखबार लाकर साइकिल से घर-घर जाकर बेचने लगे।

कलाम अब युवा थे। बीएससी के बाद पायलट बनने का सपना पूरा करने के लिए उन्‍हें एअरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना था। मद्रास इंस्‍टीट्यूट ऑफ टेक्‍नोलॉजी (MIT) में प्रवेश के लिए परीक्षा दी। चयन हो गया, लेकिन फीस एक हजार रुपए थी। उस समय यह बड़ी राशि थी। बहन जोहरा ने अपने गहने गिरवी रखकर फीस जुटाई।

दो जगह इंटरव्‍यू, मनपसंद में नहीं हो पाए पास तो हो गए निराश

MIT में पढ़ाई के बाद डॉ. कलाम बेंगलुरु में हिंदुस्‍तान एअरोनॉटिक्‍स लिमिटेड से ट्रेनी के रूप में जुड़े। डॉ. कलाम अपनी किताब ‘विंग्‍स ऑफ फायर’ मे लिखते हैं-‘एक ही वक्‍त मुझे दो इंटरव्‍यू मिले। एक दिल्‍ली में रक्षा मंत्रालय के Directorate of Technical development and production (DTD & P-Air) से और दूसरा देहरादून में भारतीय वायुसेना से।‘ पूर्व राष्ट्रपति ने अपनी किताब में लिखा, MIT से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग करने के बाद उनका सबसे अहम सपना था कि वह पायलट बनें। DTDP का इंटरव्यू तो आसान था, लेकिन देहरादून में वायुसेना का चयन बोर्ड चाहता था कि कैंडीडेट की योग्यता और इंजीनियरिंग के ज्ञान के साथ व्‍यक्तित्‍व भी स्मार्ट हो। डॉ. कलाम ने यहां 25 कैंडीडेट्स में से नौंवा स्थान हासिल किया, जबकि आठ का ही चयन होना था। उनका सपना एक कदम दूर रह गया। निराश हो गए तो पहुंच गए ऋषिकेश। यहां से उनके जीवन की दिशा ही बदल गई।

स्‍वामी शिवानंद जी का मिलना और भगवदगीता का ज्ञान

कलाम ने सोचा-बहन के गिरवी रखकर यहां तक आया हूं। सोचा था पायलट बनेंगे, नहीं बन पाए तो वापस जाने से क्‍या फायदा। आत्‍महत्‍या जैसे खयाल आने लगे। गंगा किनारे पहुंच गए। तभी संध्‍या आरती के पश्‍चात मां गंगा को प्रणाम करने के लिए स्‍वामी शिवानंद स्‍वामी वहां से गुजरे तो उन्‍होंने देखा एक युवा तेजी से चहलकदमी कर रहा है। यह बात 1957 की है। स्‍वामी शिवानंद कलाम तक पहुंचे और उनसे दुखी होने का कारण पूछा। भगवद गीता के 11वें अध्‍याय के श्‍लोक का जिक्र करते हुए स्‍वामी शिवानंद ने कलाम से कहा-‘हराने वाली प्रवृत्तियों को हराओ।‘ इस घटना का जिक्र करते हुए डॉ. कलाम लिखते हैं, “यहाँ गुरु एक ऐसे छात्र को रास्ता दिखा रहे थे, जो लगभग भटक गया था!”

स्‍वामी शिवानंद ने डॉ कलाम से कहा,-‘अपनी किस्‍मत को स्‍वीकारो और आगे बढ़ो। पायलट बनना तुम्‍हारे नसीब में नहीं है। अपनी असफलता को स्‍वीकार करो और खुद को ईश्‍वर को समर्पित कर दो।‘ स्‍वामी शिवानंद की इसी प्रेरणा से डॉ. कलाम बाद में DTDP से जुड़े और आगे चलकर देश के महान मिसाइल वैज्ञानिक बने।

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