charaideo maidam : कहां और क्या हैं चराईदेव के मैदाम Charaideo maidam? जिनका जिक्र कर पीएम मोदी ने कहा-एक बार जरूर देखने जाएं, यूनेस्को ने चराईदेव के मैदाम को विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल किया है।
Charaideo maidam का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को अपने मासिक ‘मन की बात’ रेडियो कार्यक्रम में कहा कि वह उस विषय को साझा करना चाहते हैं, जिसे सुनकर हर भारतवासी का सिर गर्व से ऊंचा हो जाएगा और यह स्थल जरूर देखने जाना चाहिए। पीएम ने चराईदेव के मैदाम का जिक्र इसलिए किया क्योंकि यूनेस्को ने सांस्कृतिक संपत्ति श्रेणी के अंतर्गत इसे विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल किया है।
दरअसम, चराईदेव के मैदान Charaideo maidam असम के अहोम राजवंश की 700 वर्ष पुरानी स्तूप-समाधि प्रथा है। यह वर्तमान असम के चराईदेव जिले में स्थित है। भारत सरकार इसे विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल करने के लिए 10 वर्ष से प्रयास कर रही थी।
यह पूर्वोत्तर भारत से मान्यता प्राप्त पहला सांस्कृतिक विरासत स्थल है।
काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और मानस राष्ट्रीय उद्यान के बाद असम का यह तीसरा विश्व धरोहर स्थल है, लेकिन सांस्कृतिक श्रेणी में पहला है।
यूनेस्को की विश्व धरोहर की लिस्ट में यह भारत की 43वीं धरोहर है।
Charaideo maidam : शाइनिंग सिटी ऑन द हिल्स
पीएम मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कहा, ’आपके मन में यह सवाल जरूर आ रहा होगा कि चराईदेव के मैदाम Charaideo maidam आखिर है क्या? और इतना खास क्यों है?
चराईदेव का मतलब है शाइनिंग सिटी ऑन द हिल्स यानी पहाड़ी पर एक चमकता शहर। चराईदेव अहोम राजवंश की पहली राजधानी थी। यह स्थल पूर्वी असम में पाटकाई पवर्तमाला की तलहटी में स्थित है।
Charaideo maidam क्या है
अहोम राजवंश के लोग अपने पूर्वजों के शव और उनकी कीमती चीजों को पारंपारिक रूप से मैदाम में रखते थे। मैदाम टीलेनुमा एक ढांचा होता है, जो ऊपर मिट्टी से ढंका होता है और नीचे एक या उससे ज्यादा कमरे होते हैं।
इस स्थल में ताई-अहोम का शाही समाधि स्थल है। इसे ही मैदाम (स्तूप-समाधि) कहा जाता है।
Charaideo maidam अहोम साम्राज्य के दिवंगत राजाओं और गणमान्य लोगों के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है। अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान प्रकट करने का यह तरीका बहुत अनूठा है। इस जगह पर सामुदायिक पूजा भी होती थी।
Charaideo maidam 600 वर्षों तक बनाए
ताई-अहोम ने 600 वर्षों तक पहाडि़यों, जंगलों और पानी की प्राकृतिक स्थल आकृतियों को उभारने के लिए मैदाम बनाए। इस स्थल के भीतर ऐसे 90 मैदाम हैं। इन्हें असम का पिरामीड भी कहा जाता है।
पीएम मोदी ने कहा कि अहोम साम्राज्य के बारे में दूसरी जानकारियां आपको और हैरान करेगी। 13वीं शताब्दी के शुरू होकर यह साम्राज्य 19वीं शताब्दी की शुरुआत तक चला।
इतने लंबे कालखंड तक एक साम्राज्य का बने रहना बहुत बड़ी बात है। शायद अहोम साम्राज्य के सिद्धांत और विश्वास इतने मजबूत थे कि उसने इस राजवंश को इतने समय तक कायम रखा।
मोदी ने कहा, मुझे याद है कि इसी वर्ष 9 मार्च को मुझे अदम्य साहस और शौर्य के प्रतीक महान अहोम योद्धा लसित बोर फुकन की सबसे ऊंची प्रतिमा के अनावरण का सौभाग्य मिला था।
नहीं झुके थे मुगलों के आगे
अहोम साम्राज्य असम के ब्रह्मपुत्र घाटी में 1228 में स्थापित साम्राज्य था। यह अपनी बहु-जातीय संरचना और 600 वर्षों तक अपनी संप्रभुता बनाए रखने के लिए जाना जाता है।
एक समय तो इसने अपनी स्वतंत्रता को सफलतापूर्वक बनाए रखने के लिए मुगल साम्राज्य से भी संघर्ष किया था और मुगलों को आगे नहीं झुके थे।
अहोम साम्राज्य ने वर्ष 1615 में मुगल साम्राज्य के खिलाफ पहली बार बड़ी लड़ाई का सामना किया था। गढ़गांव की अहोम राजधानी पर 1662 में मुगलों ने कब्जा कर लिया था, लेकिन बाद के युद्धों में उन्हें मार भगाया गया।
अंत में, 1671 में सरायघाट की लड़ाई के दौरान लचित बोरफुकन के नेतृत्व में अहोम ने बड़े मुगलों के हमले को नाकाम कर दिया था और अपनी सीमाओं का विस्तार पश्चिम की ओर मानस नदी तक बढ़ा लिया था। वर्ष 1682 आते-आते इस क्षेत्र में मुगलों का नामोनिशान मिट गया।
यह भी पढ़ें :
https://www.thedailynewspost.com/indore-manmad-rail-project/