Bangladesh: बांग्लादेश में फैली आरक्षण की आग ने एक पूर्ण बहुमत की सरकार को तबाह कर दिया। सात माह पहले पांचवीं बार प्रधानमंत्री चुनी गईं शेख हसीना को बांग्लादेश Bangladesh में हिंसक आरक्षण आंदोलन के चलते न केवल पद बल्कि जान बचाने के लिए देश भी छोड़ना पड़ा।
गनीमत है कि वे समय रहते देश छोड़कर भारत पहुंच गईं, वरना उनके पिता और बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की तरह उन्हें भी जान से हाथ गंवाना पड़ सकता था।
Bangladesh : आरक्षण आंदोलन क्यों शुरू हुआ
सरकार ने बांग्लादेश Bangladesh की 1971 की आजादी की लड़ाई में शामिल स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों को 1972 में 30 प्रतिशत आरक्षण दिया था। 2018 में सरकार ने इसे खत्म कर दिया था, लेकिन हाई कोर्ट ने इसे फिर बहाल कर दिया।
इसी के विरोध में छात्र आंदोलन भड़क उठा। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का फैसला पलट कर आरक्षण का कोटा घटा दिया था, लेकिन इसके बावजूद हिंसा नहीं रूकी।
बांग्लादेश Bangladesh की सुप्रीम कोर्ट ने 21 जुलाई 2024 में देश की सरकारी नौकरियों में आरक्षण का कोटा लगभग खत्म कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि अब केवल पांच फीसदी सरकारी नौकरियां 1971 के स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए आरक्षित होंगी।
इसके अलावा दो फीसदी नौकरियां अल्पसंख्यकों या दिव्यांगों के लिए आरक्षित होंगी। शेष 93 फीसदी पदों पर योग्यता के आधार पर भर्ती होगी।
उम्मीद थी शांति बहाल हो जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और नतीजतन हिंसा की आग में हसीना सरकार तबाह हो गई। भारत के सबसे प्रिय व पड़ोसी देश बांग्लादेश में ताजा तख्ता पलट की वजह आरक्षण का मसला रहा।
हसीना सरकार हालात से निपट नहीं पाई। विपक्षी दलों के उकसावे पर भारी खूनखराबे और 450 से ज्यादा मौतों के बाद हसीना सरकार का तख्ता पलट हो गया।
Bangladesh : पहले इतना था आरक्षण
44 फीसदी सामान्य यानी अनारक्षित वर्ग के लिए कोटा 30 फीसदी कोटा स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए 1 फीसदी दिव्यांगों के लिए कोटा था 5 धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए कोटा था 10 फीसदी महिलाओं के लिए आरक्षण था 10 फीसदी पिछड़े जिलों के लिए था
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आरक्षण
93 फीसदी कोटा सामान्य वर्ग के लिए यानी अनारक्षित 5 फीसदी स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों के लिए 2 फीसदी धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए
आजादी के 4 साल बाद ही पहला तख्ता पलट
बांग्लादेश में तख्ता पलट हालिया वर्षों में नया है, लेकिन 1971 में पाकिस्तान से मुक्ति के चार साल बाद अगस्त 1975 में ही बांग्लादेश में तख्तापलट हुआ था। Bangladesh के संस्थापक व शेख हसीना के पिता राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या कर दी गई थी। शेख हसीना की मां और तीन भाइयों को भी मार डाला था।
1975 में भी भागकर भारत आई थीं
शेख हसीना 1975 में बांग्लादेश में पहले तख्तापलट के बाद भी जान बचाने के लिए भारत आई थीं। तब वह छह साल तक भारत में रही थी।
शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद देश में लंबे समय तक सैन्य शासन रहा था। इसी दौरान जनरल जियाउर रहमान ने देश की सत्ता पर कब्जा जमा लिया था।
जियाउर रहमान की भी हत्या
Bangladesh में राजनीतिक हत्या का सिलसिला लंबा है। 1975 में राष्ट्रपति शेख मुजीब की हत्या के बाद 1981 में विद्रोहियों ने चटगांव के सरकारी गेस्ट हाउस में तत्कालीन राष्ट्रपति जियाउर रहमान की हत्या कर दी गई थी।
इसके बाद 1982 में फिर देश में तख्ता पलट हुआ और जनरल जियाउर रहमान की जगह अब्दुस सत्तार ने बागडोर संभाल ली। तब मुहम्मद इरशाद हुसैन को मुख्य मार्शल-लॉ प्रशासक बनाया गया था।
पांचवीं बार बनी थीं पीएम
1996 में शेख हसीना ने पहली बार बांग्लादेश की सत्ता संभाली थी। वह चार बार लगातार प्रधानमंत्री रहीं। शेख हसीना का यह पांचवां कार्यकाल था। वह खालिदा जिया के बाद बांग्लादेश की दूसरी महिला थीं।
2001 में वह चुनाव हार गई थी और सात सालों तक वह विपक्ष की नेता रहीं। 2009 में फिर सत्ता में आई और तब से लगातार पीएम थीं। इस दौरान उन्होंने देश को आर्थिक रूप से शक्तिशाली बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
इसी कारण बांग्लादेश दुनिया में तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों में शुमार है, न कि पाकिस्तान की तरह तबाह अर्थव्यवस्था वाला देश। पाकिस्तान 1947 में आजाद हुआ और बांग्लादेश 1971 में उससे अलग हुआ।
उसके मुक्ति आंदोलन में भारत ने बड़ी भूमिका निभाई थी। तब भारत में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं।
1971 की जबर्दस्त जंग में पाकिस्तान की करारी हार और पूर्वी पाकिस्तान को अलग कर बांग्लादेश का गठन हुआ था। इस शानदार जीत के बाद इंदिरा गांधी को आयरन लेडी या लौह महिला माना जाने लगा था।
हालिया वर्षों में बांग्लादेश की जबर्दस्त आर्थिक प्रगति के चलते शेख हसीना को भी वहां की आयरन लेडी माना जाने लगा था।
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