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GBS: पुणे में 5 मौतों के बाद चेन्नई में जीबीएस से 1 मौत

पेयजल में क्लोरीन की कमी से GBS बै​क्टीरिया ज्यादा फैला

महाराष्ट्र के प्रमुख औद्योगिक शहर पुणे में GBS (Guillain Barre Syndrome) के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। महाराष्ट्र में अब तक GBS के 166 मरीज मिल चुके हैं। छह मरीजों की मौत हो चुकी है। 21 मरीज वेंटिलेटर पर जीवन और मौत से संघर्ष कर रहे हैं। इस बीच चेन्नई में 10 साल के एक लड़के की जीबीएस से मौत की खबर मिली है। इससे लगता है कि यह बीमारी अब दूसरे राज्यों में भी फैल रही है।
पुणे में गुलियन-बैरी सिंड्रोम GBS के केस लगातार बढ़ते जा रहे हैं। यहां इस रोग के पांच नए मामले सामने आए हैं। महाराष्ट्र में कुल मरीजों की संख्या 163 हो गई है।

हालांकि, पिछले कुछ दिनों में नए मरीजों की संख्या भी कम हो रही है। वहीं, दूसरी ओर पुणे के दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल में अब भी 21 लोग वेंटिलेटर पर हैं।

GBS: कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी बैक्टीरिया जिम्मेदार

महाराष्ट्र के स्वास्थ्य विभाग ने जीबीएस के लिए कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी बैक्टीरिया को जिम्मेदार बताया है।

यह दूषित पानी के कारण फैला। यह 70 मरीजों के 70 मल के नमूनों की जांच से पुष्टि हुई। इनमें से 27 मरीजों के मल में यह बैक्टीरिया पाया गया।

पानी में क्लोरिन की मात्रा 0.2 पीपीएम रखें

GBS के संक्रमण की जांच में यह भी पता चला है कि पेयजल में क्लोरीन की कमी से यह GBS बै​क्टीरिया ज्यादा फैला। क्लोरीन पानी का शुद्ध करता है।

इसलिए पुणे नगर निगम के जल विभाग ने घरों के पेयजल में क्लोरीन की मात्रा 0.2 पीपीएम (प्रति मिलियन भाग) करने की सलाह दी है।

जिन इलाकों में GBS संक्रमण पाया गया, वहां पीने के पानी में क्लोरीन की मात्रा बिलकुल नहीं मिली है। पुणे के समीप नांदेड़ गांव के 26 घरों के पेयजल में क्लोरीन नहीं पाया गया।

चेन्नई में बच्चे की मौत

उधर, 31 जनवरी को चेन्नई इंस्टीट्यूट आफ चाइल्ड हेल्थ में मृत 10 साल के बच्चे की रिपोर्ट में जीबीएस से मौत की पुष्टि हो गई है। यह तमिलनाडु में GBS से पहली मौत है। इसके साथ ही देश में अब तक 7 मरीजों की GBS से मौत हो गई है।

दोनों पैरों से शुरू होती है बीमारी

आमतौर पर GBS के लक्षण दोनों पैरों में नजर आते हैं। कुछ मामलों में बाहों या सिर से यह बीमारी शुरू होती है। इसके साथ ही शारीरिक कमजोरी और एक झुनझुनी या चुभन की अनुभूति या संवेदना की क्षति शामिल है।

असामान्य संवेदना की तुलना में कमजोरी अधिक प्रमुख होती है। प्रतिक्रिया कम या मौजूद ही नहीं होती हैं। GBS से पीड़ित 90% लोगों में, लक्षण शुरू होने के 3 से 4 सप्ताह बाद कमजोरी सबसे गंभीर होती है।

5 से 10% लोगों में सांस को नियंत्रित करने वाली मांसपेशियां इतनी कमजोर हो जाती हैं कि वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है। जब बीमारी गंभीर हो जाती है तो आधे से अधिक प्रभावित लोगों में चेहरे और निगलने की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं।

जब ये मांसपेशियां कमजोर होती हैं, तो खाना खाते समय दम घुटने से मौत हो सकती है।

लंबा चलता है इलाज, सिर्फ 2 फीसदी की मौतें :

GBS के मरीजों की हालत तेजी से बिगड़ती है, इसलिए उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती कराना चाहिए। अस्पताल के आईसीयू में मरीजों पर लगातार नजर रखी जाती है, ताकि जरूरत पड़ने पर उन्हें कृत्रिम श्वसन प्रणाली पर रखा जा सके।

जीबीएस के पीड़ित मरीजों का इलाज लंबा चलता है। आमतौर पर आठ सप्ताह में मरीज इससे उबरने लगता है, लेकिन इससे पूरी तरह ठीक होने में कई महीने लग जाते है।

कुछ मरीजों में तो तीन साल से ज्यादा समय तक जीबीएस के कारण कमजोरी नजर आती है। इस बीमारी के कारण सिर्फ दो फीसदी लोगों की मौत होती है। यानी 98 फीसदी मरीज लंबे इलाज के बाद ठीक हो जाते हैं।

यह भी पढ़ें:

https://www.thedailynewspost.com/saving-10-year-narendra-modi/

https://youtu.be/A1HbD99VjdY?si=jiskx9zToDhrWdvo

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